sign language discussion (1)

‘Indian Sign Language Awareness Program’ discussion on the occasion of International Day of Sign Languages

सिरसा 22 सितंबर, 2021: जननायक चौ. देवीलाल शिक्षण महाविद्यालय, सिरसा के सभागार कक्ष में सांकेतिक भाषा का अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर ‘भारतीय सांकेतिक भाषा जागरूकता कार्यक्रम’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में मुख्य अतिथि जननायक चौ. देवीलाल विद्यापीठ के प्रबंध निदेशक डॉ.शमीम शर्मा व कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. जयप्रकाश एवं कार्यक्रम में मुख्य वक्ता भावना मितुर्का रहें। इस अवसर पर सुमन ,शेखर शर्मा, संदीप, जेसीडी शिक्षण महाविद्यालय का समस्त स्टाफ एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम के शुभारंभ में जेसीडी शिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. जयप्रकाश ने आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए और भारतीय सांकेतिक भाषा का महत्व बताते हुए कहा कि सांकेतिक भाषा एक दृश्य भाषा है जो सुनने में अक्षम दिव्यांगजनों के लिए संचार के साधन के रूप में हाथों, चेहरे और शरीर के भावों का उपयोग करती है। यह एक अनोखी भाषा है जो देश में सुनने में अक्षम व्यक्तियों को एकीकृत करती है। देश में कई बोली जाने वाली भाषाएँ हैं, लेकिन भारतीय सांकेतिक भाषा केवल एक ही है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. शमीम शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि हमें दिव्यागों के प्रति लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करना। 28 सितंबर, 2015 को नई दिल्ली में भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (आईएसएलआरटीसी) की स्थापना की गई जो की सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग के अंतर्गत है और एक स्वायत्त संस्थान है। केंद्र का मुख्य उद्देश्य भारतीय सांकेतिक भाषा के उपयोग को लोकप्रिय बनाने और भारतीय सांकेतिक भाषा में शिक्षण तथा अनुसंधान हेतु मानव शक्ति के विकास की दिशा में कार्य करना है। सांकेतिक भाषा संप्रेषण का एक माध्यम है, जहाँ हाथ के इशारों और शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार सांकेतिक भाषाएँ बोली जाने वाली भाषाओं से संरचनात्मक रूप से अलग होती हैं और इनका प्रयोग अधिकांशतः श्रवण बाधित लोगों द्वारा किया जाता है।

मुख्य वक्ता भावना मितुर्का ने संबोधित करते हुए कहा कि सांकेतिक भाषा वह भाषा है, जिसमें किसी चीज को समझाने के लिए विभिन्न प्रकार के हाथों का सहारा, उंगलियों का सहारा, अपने चेहरे के हाव-भाव, किस चीज को देखकर समझाना यह सभी सांकेतिक भाषा के अंतर्गत आता है। इसमें किसी चीज को ध्यान आकर्षण करके उन चीजों को सामने वाले को इस प्रकार प्रदर्शित करना है, कि वह चीजों के बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त कर सके। खासकर सांकेतिक भाषा उन जगहों में उपयोग किया जाता है, जहाँ बच्चे मूकबधिर होते हैं। इसलिए सांकेतिक भाषा उनके लिए बनाई गई है, जो इन चीजों को आसानी से समझ सके, और दूसरों को समझा सके, और उनके द्वारा वह अपने भविष्य निर्माण में सजग हो सकें। भारतीय सांकेतिक भाषा का उपयोग पूरे भारत में बहरे समुदाय में किया जाता है। लेकिन बधिर बच्चों को पढ़ाने के लिए बहरे स्कूलों में आईएसएल का उपयोग नहीं किया जाता है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम आईएसएल का उपयोग करने वाले शिक्षण विधियों की ओर शिक्षकों को उन्मुख नहीं करते हैं। कोई शिक्षण सामग्री नहीं है जो सांकेतिक भाषा को शामिल करती है। बधिर बच्चों के माता-पिता सांकेतिक भाषा और संचार बाधाओं को दूर करने की क्षमता के बारे में जागरूक नहीं हैं। आईएसएल दुभाषियों को उन संस्थानों और स्थानों पर तत्काल आवश्यकता है जहां बहरे और सुनने वाले लोगों के बीच संचार होता है। भारतीय सांकेतिक भाषा के मानकीकरण का यह कार्य समाज को समावेशी बनाने और पूरे भारत में सांकेतिक भाषा की विभिन्न बोलियों के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित करने की दिशा में सहयोग और योगदान करने का एक अवसर प्रदान करता है। इस कार्यक्रम में मुक्यरूप से आर के जे सरवन एंड वाणी निष्कत जन कल्याण केंद्र से सुमन ,शेखर शर्मा,संदीप के इलावा शिक्षण महाविद्यालय का सारा स्टाफ उपस्थित था यह कार्यक्रम शिक्षण विशेष प्रवक्ता मदनलाल की देखरेख में करवाया गया I कार्यक्रम के अंत में विशेष शिक्षण प्रोफेसर डॉ राजेंद्र कुमार ने सभी का आभार व्यक्त किया

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