Poster Making and Essay Writing Competition

फसल अवशेष प्रबंधन के तहत निबंध लेखन, स्लोगन लेखन व पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता का आयोजन

सिरसा 16-03-2021; जननायक चौधरी देवीलाल शिक्षण महाविद्यालय, सिरसा में कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा के सौजन्य से फसल अवशेष प्रबंधन के तहत एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता का शुभारंभ मुख्य अतिथि जननायक चौधरी देवीलाल विद्यापीठ के प्रबंध निदेशक डॉ.शमीम शर्मा तथा विशिष्ट अतिथि कृषि विज्ञान केंद्र, सिरसा से वरिष्ठ संयोजक डॉ. देवेंद्र कुमार जाखड़, वैज्ञानिक डॉ. सुनील बैनीवाल एवं वैज्ञानिक डॉ. औमप्रकाश व कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज के प्राचार्य डॉ. जयप्रकाश ने की। इस प्रतियोगिता के तहत निबंध लेखन, स्लोगन लेखन व पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कॉलेज के प्राचार्य डॉ. जयप्रकाश ने आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि खेतों में फसल अवशेष जलाकर नष्ट करने की प्रक्रिया से वातावरण दूषित होता है। जमीन का कटाव बढ़ता है एवं सांस की बीमारियां बढ़ती हैं। फसल अवशेषों को जमीन में सीधे ही समावेश करने की प्रक्रिया सरल है। डॉ. जयप्रकाश ने कहा कि यदि पराली जलाने के वैकल्पिक प्रबंध नहीं किए गए तो प्रदूषणकारी तत्व, कार्बन मोनोऑक्साइड और मीथेन जैसी जहरीले गैसों के कारण श्वसन संबंधी गंभीर समस्याओं में बढ़ोतरी हो सकती है, जिसके चलते कोविड-19 के हालात और बिगड़ जाएंगे क्योंकि कोरोना वायरस श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है

मुख्य अतिथि विद्यापीठ प्रबंध निदेशक डॉ.शमीम शर्मा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि विद्यार्थी को विद्यार्थी जीवन में आगे बढ़ने के लिए अनिवार्य है कि वे इस प्रकार की प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर भाग ले। डॉ. शर्मा ने कहा कि भारत के कई राज्य धुंध छा जाने की समस्या से परेशान हैं, इसके लिए धान की पराली जलाने वाले किसानों को उत्तरदायी माना जा रहा है। यह समस्या सर्दियों में और भी गंभीर होती है, क्योंकि यह खरीफ की फसल धान की कटाई के बाद खेत मे बचे फसल अवशेष, जिसे पराली कहते हैं, को बड़ी मात्रा में जलाने के चलते होती है। फसल अवशेष को जलाने के कारण तापमान 40-60 डिग्री होने के कारण मिट्टी में पाए जाने वाले उपयोगी कीट व पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं। इसके साथ ही कई केचुआ भी बर्बाद होते हैं, जिससे फसल प्रबंधन की प्राकृतिक प्रवृति का ह्रास होता है। फसल अवशेष को जलाने के कारण एजोटोबैक्टर, एजोस्प्रिलम, स्यूडोमोनस आदि प्रजाति के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जबकि जीवाणु और पोषक तत्व के नष्ट होने के कारण फसल में झूलसा रोग, झोंका रोग सहित कीट-व्याधी का प्रकोप बढ़ने की संभावना बढ़ती है। पराली जलाने की रोकथाम के लिए किसानों को जागरूक करना होगा। अवशेष प्रबंधन कर किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र, सिरसा से वरिष्ठ संयोजक डॉ. देवेंद्र कुमार जाखड़ ने कहा कि इस प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य है कि विद्यार्थियों को फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी देना और ये जानकारी विद्यार्थी अपने क्षेत्र में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में अपने अभिभावकों, किसानों को भी दें। डॉ. जाखड़ ने कहा कि हमारे देश में सालाना 630-635 मि. टन फसल अवशेष पैदा होता है। कुल फसल अवशेष उत्पादन का 58 प्रतिशत धान्य फसलों से 17 प्रतिशत गन्ना, 20 प्रतिशत रेशा वाली फसलों से तथा 5 प्रतिशत तिलहनी फसलों से प्राप्त होता है। सर्वाधिक फसल अवशेष जलाने की रिपोर्ट पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं परन्तु आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में फसल अवशेष जलाने की प्रथा चल पड़ी है और बदस्तुर जारी है। फसल अवशेष प्रबन्धन की विधियों की जानकारी न होने व होते हुए भी किसान अनभिज्ञ बने हुए हैं। आज कृषि के विकसित राज्यों में मात्र 10 प्रतिशत किसान ही अवशेषों का प्रबन्धन कर रहे हैं।

प्रतियोगिता के विजेता विद्यार्थियों को मुख्य अतिथि डॉ.शमीम शर्मा, विशिष्ट अतिथि डॉ. देवेंद्र कुमार जाखड़, डॉ. सुनील बैनीवाल, डॉ.औमप्रकाश व प्राचार्य डॉ. जयप्रकाश ने सम्मानित किया। इस अवसर पर जेसीडी शिक्षण महाविद्यालय का समस्त स्टाफ एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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